BPSC मेंस: निबंध लेखन की सटीक रणनीति दिलाएगी सफलता, ऐसे लिखिए निबंध

निबंध लेखन संबंधी रणनीति

निबंध को सामान्य तौर पर गद्य लेखन की एक विद्या के रूप में देखा जाता है। यह किसी भी विषय पर विस्तृत, क्रम-बद्ध ढंग से लिखा जाता है जिसमें विचार विषय वस्तु के ही इर्द-गिर्द हों इसका ध्यान रखना चाहिए। 1. लेख, निबंध से अलग कैसे ? / लेख और निबंध में अंतर –

● निबंध लेखन के बारे में जानने से पहले हमें इसकी एक निकटवर्ती विधा ‘लेख’ के बारे में जानना चाहिए ताकि दोनों के बीच के अंतर को समझा जा सके ।

निबंध दरअसल लेख की तुलना में आत्मनिष्ठ (Subjective) होता है अर्थात् यहाँ टॉपिक पर लेखक के निजी विचार, भाव, अनुभवों की प्रधानता देखी जाती है। वहीं कोई लेख वस्तुनिष्ठ (Objective) अधिक होता है जो कि आँकड़ो, तथ्यों एवं विचार-तटस्थता के दायरे में लिखा जाता है। हाँलाकि निबंध में भी आँकड़ो, तथ्यों का प्रयोग किया जाता है परन्तु इसका ध्यान रहे कि ये आवश्यकता से अधिक न हो तथा विषय वस्तु से संबंधित विचार की पुष्टि में सहायक हो ।

इसके अलावा निबंध में कविता की पंक्तियों, नैतिक विचारों, महान दार्शनिकों के कथन आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है परन्तु निबंध में इन पक्षों के बावजूद लेखक के निजी विचार, विषय के संदर्भ में स्पष्ट रूप से व्यक्त होना चाहिए।

निबंध और लेख में एक अंतर समय एवं स्थान के संदर्भ में होता है । ‘लेख’ मुख्य तौर पर समकालीन मुद्दों पर केन्द्रित होता है और इसका लेखक स्थान के संदर्भ में लेख के विषय का निर्धारण करता है।

• वहीं निबंध में जब तक स्पष्ट रूप से समय या स्थान, विषय में वर्णित न हों तब तक लेखक को इसके दायरे में रहना जरूरी नहीं होता। जैसेG-20 मंच पर भारत की अध्यक्षता, भारत में नक्सलवाद की समस्या जैसे विषय स्थान, समय के दायरे की ओर संकेत करते हैं। वहीं सतत विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र संगठन में सुधार, ‘नर सेवा ही नारायण सेवा हैं, जैसे विषय समय एवं स्थान के संदर्भ से मुक्त होते हैं अत: यहाँ लेखक समय, स्थान की परिधि से बाहर भी जाकर निबंध लिख सकता है। जैसे- सतत विकास लक्ष्य के संदर्भ में यूरोपीय देशों के प्रयास हों CRIA

या अफ्रीका में विभिन्न देशों द्वारा संचालित सामुदायिक विकास कार्यक्रमों का उल्लेख।

2. निबंध के प्रकार

ये मुख्य रूप से दो प्रकार के विषयों में होते हैं- मूर्त विषय एवं अमूर्त विषय। मूर्त विषय के अन्तर्गत वर्णनात्मक निबंध टॉपिक्स आते हैं। जैसे- भारत में गरीबी की समस्या, आत्मनिर्भर भारत की पहल। इन टॉपिक्स में लेखक विषयवस्तु से निकटता रखते हुए जरूरी तथ्यों, आँकड़ों का प्रयोग कर निबंध लिखता है।

अमूर्त विषय पर आधारित निबंध लेखक की कल्पना शक्ति, वैचारिक दृष्टिकोण पर अधिक केन्द्रित होता है। यह प्रकृति में मूर्त विषयों की अपेक्षा अधिक मुक्त एवं खुला होता है। साथ ही लेखक इसमें निबंध टॉपिक्स के संदर्भ में अधिक आत्मनिष्ठ ढंग से निबंध लिख सकता है। जैसे- ‘आप जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं’, ‘नेकी कर दरिया में डाल’, ‘मुख से निकली बात वापस नहीं हो सकती’ आदि जैसे कहावतों, मुहावरों, विचारों पर आधारित विषय | –

3. निबंध लेखन के चरण :

प्रथम चरण

दिए गए निबंध विकल्पों में सही टॉपिक का चुनाव, उस टॉपिक और निबंध की पूर्ण माँग को समझते हुए करना चाहिए। जैसे- ‘भारत में कृषि क्षेत्र की समस्याएँ’ जो सामान्य तौर पर किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करती है परन्तु यह टॉपिक किसानों के साथसाथ कृषि क्षेत्र में अवसंरचना, विपणन प्रबंधन, वित्तीयन आदि समस्याओं तक भी विस्तारित है। अत: टॉपिक का चुनाव उसके व्यापकता से परिचित होने के साथ ही करना चाहिए।

दूसरा चरण

निबंध टॉपिक से जुड़े विचार, तथ्य, कहावतें, उनके अलग-अलग आयाम के प्रति एक स्थूल रेखा चित्र (ब्लूप्रिंट) तैयार कर लेना चाहिए कि निबंध की शुरुआत से लेकर अर्थात् भूमिका, मुख्य भाग एवं निष्कर्ष तक की दिशा क्या होगी। समय और स्थान के संदर्भ में निबंध को कितना विस्तारित करना है, यह भी तय कर लेना चाहिए ।

 

तीसरा चरण

 

यह चरण निबंध की पृष्ठभूमि और भूमिका से जुड़ा होता है। टॉपिक के अनुरूप किसी महान दार्शनिक के विचार, किसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, समकालीन घटना से निबंध के पृष्ठभूमि की शुरूआत की जानी चाहिए, जहाँ आगे चलकर यह टॉपिक की भूमिका से जुड़ जाये। जैसेआपदा प्रबंधन की समस्या के सम्बंध में 2008 में बिहार में कोसी बाढ़ विभीषिका से सम्बंधित कोई केस स्टोरी या आधिकारिक आँकड़े का

 

प्रयोग।

 

• आगे टॉपिक के अर्थ, उसके सकारात्मक पक्ष, सीमाओं आदि को भी उल्लीखित करते हुए भूमिका की ओर बढ़ना चाहिए। → यहाँ ध्यान रहे कि भूमिका में टॉपिक के बारे में बहुत विस्तार से कुछ लिखने के बजाय कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों, आँकड़ो को प्रस्तुत कर

 

आगे बढ़ें जिससे परीक्षक आगे निबंध पढ़ने के लिए उत्सुक हो । जैसे- वित्तीय समावेशन के संदर्भ में लिखना कि 2016-17 में डिजिटल लेन-देन 1005 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में 5500 करोड़ हो जाना, भारत में जनधन खाताधारकों की संख्या 45 करोड़ से अधिक हो जाना । उपरोक्त के अलावा भूमिका किसी पद्य रचना के अंश, कविता, कहानी के अंश, किसी महान विभूति के कथन से भी प्रारंभ की जा सकती है जो न केवल निबंध के टॉपिक से संबंधित हो बल्कि निबंध को आकर्षक, रोचक और पठनीय भी बनाएँ।

 

चौथा चरण

 

निबंध का मुख्य भाग (Body Part) भूमिका के बाद निबंध के प्रवाह को बनाये रखने और टॉपिक के सम्बंध में कुल शब्द सीमा का 70 से 75% लेखन पर केन्द्रित होना चाहिए। मुख्य भाग में टॉपिक के सभी संभावित आयामों, उनके पक्ष और विपक्ष, सकारात्मक पक्षों एवं सीमाओं से जुड़े पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए।

 

यहाँ ध्यान रहे कि टॉपिक यदि सकारात्मक है तो पक्ष में 70 फीसदी, विपक्ष में 30 फीसदी लिखें और विपक्ष के तर्क को संभावित समाधान, प्रयासों, उपायों से संतुलित कर हमेशा सकारात्मक निष्कर्ष की ओर बढ़ें। जैसे- नई शिक्षा नीति 2020 पर आधारित निबंध में प्रावधानों, संभावित सकारात्मक प्रभावों, सीमाओं और उनके लिए उपयोगी समाधान पर आधारित लेखन मुख्य भाग के रूप में हो सकता है।

 

• निबंध के आयाम निर्धारण एवं दिशा प्रदान करने में निम्नलिखित विषय-वस्तु से संबंधित घटक सहायक सिद्ध होंगे।  यदि निबंध के टॉपिक सामाजिक सौहार्द, सहिष्णुता, समावेशी विकास पर आधारित हो तो उपरोक्त वर्ग आयाम के तौर पर शामिल किये जा सकते हैं।

 

उपरोक्त आयामों को निबंध के टॉपिक के अनुरूप प्रयोग करते हुए इन आधारों पर लेखन को विस्तार दिया जा सकता है। जैसे‘संरक्षणवाद की ओर बढ़ता विश्व’ टॉपिक पर प्रमुख दर्शन व विमर्श, विकास के मानक, अंतर्राष्ट्रीय समस्याएँ आदि आयाम के तौर पर शामिल हो सकते हैं।

 

पाँचवा चरण

 

→ निष्कर्ष जोकि निबंध का अंतिम चरण है यह टॉपिक के मुख्य भाग के लेखन के समाप्त होने के साथ, अगले पैराग्राफ से ऐसे शुरू हो जिससे पिछले पैराग्राफ से इसका जुड़ाव भी स्थापित हो और शब्दों एवं वाक्यों का दुहराव भी न हो।

 

• निष्कर्ष हमेशा टॉपिक के विश्लेषण और लेखन को पूर्णता प्रदान करते हुए भविष्योन्मुखी समाधान एवं संभावना बताते हुए लिखा जा सकता है। इसमें किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति को भी रेखांकित किया जा सकता है अथवा किसी संभावित खतरे या चेतावनी की ओर इशारा करने के साथ-साथ एकीकृत एवं प्रभावी प्रयासों पर बल देते हुए संकेत किया जाना चाहिए। जैसे- जलवायु परिवर्तन पर यदि विश्व एकजुट होकर आपसी समन्वयकारी ठोस प्रयास नहीं करता है तो यह सम्पूर्ण विश्व के लिए आत्मघाती साबित होगा।